युद्ध (war) से किसका भला होता है किसी का हो लेकिन आम आदमी का तो भला नहीं होता हाँ युद्ध में कुछ लोगों को जीत मिलती है और कुछ लोगों को हार मिलती है और हथियार कंपनियों का होता है मोटा मुनाफा लेकिन हर युद्ध (war)अपने साथएक तबाही लेकर आता है बड़े पैमाने पर लोग मारे जाते हैं जिंदगियां उजाड़ जाती है सिर्फ इंसानों को नहीं बल्कि हमारे पर्यावरण को भी युद्ध की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है दुनिया भर में जितना भी कार्बन उत्सर्जन होता है उसमें से 5.5 फीसदी के लिए सेनाएं जिम्मेदार होती हैंइसका मतलब है कि अपनी सुरक्षा के नाम पर हम पृथ्वी की सुरक्षा को दांव पर लगा रहे हैं
देखता हूँ की कार्बन उत्सर्जन की बात क्यों नहीं करता हम सबको कार्बन उत्सर्जन घटाना है कम बीमारियां क्राइम करके कम मीट खाकर और हीटिंग के लिए गैस इस्तेमाल ना करके उद्योगों को भी क्लाइमेट ट्रोल बनाने पर ज़ोर है लेकिन ये सवाल अक्सर नहीं उठाया जाता की सेनाएं जलवायु के लिए कितनी खतरनाक है सेनाओं को जलवायु संरक्षण के सभी समझौतों से दूर रखा गया है 1992 के रिओ सम्मेलन से लेकर 2015 केपेरिस सम्मेलन तक शायद इसलिए कि उनके ऊपर समाज की रक्षा की जिम्मेदारी है या फिर सरकारे इस बारे में पर्याप्त डेटा नहीं मुहैया कराती क्योंकि वो अपने सशस्त्र बलों की ताकत सैन्य साजो सामान पर रणनीति को गोपनीय रखना चाहती है फिर भी लंदन के एक टैंक सीमित डेटा के आधार परएक अनुमान प्रकाशित किया है इसके अनुसार सेनाएं दुनिया भर में होने वाले कार्बन उत्सर्जन के 5.5% के लिए जिम्मेदार है वहीं अंतर्राष्ट्रीय हवाई यातायात 3% के लिए जिम्मेदार हैतो दुनियाभर में मौजूद करीब 2,80,00,000 सैनिकों का कार्बन फुटप्रिंट बहुत ज्यादा है इसका कारण है उनके उपकरण पर्यावरणविद तो एसयूवी को लेकर ही चिंतित रहते हैं जो शहर में 15 लीटर डीज़ल में 100 किलोमीटर चलती है जबकि एक टैंक को इतनी दूरी तय करने के लिए 240 लीटर डीजल चाहिए अमेरिकी बैंक को तो और ज्यादा यानी 455 लीटर डीजल चाहिए तो इसमें हैरानी की बात नहीं है कि सैन्य उपकरण जलवायु को नुकसान पहुंचाते हैं यूक्रेन में जारी युद्ध के पहले साल में ही इतना उत्सर्जन हो गया जितना पुर्तगाल और ग्रीस कामिलाकर भी नहीं बैठता है युद्ध की वजह से जंगलों में आग लगती है तेल रिफाइनरी और गैस पाइपलाइन बर्बाद होती है घर और इमारतें तबाह होती है इन सबसे भी फुरसत बढ़ता है युद्ध में लोगों का मारा जाना कहीं गंभीर है लेकिन इसका नुकसान जलवायु वो भी होता है उत्सर्जन कोबताया जा सकता है हाइड्रोजन से चलने वालेसैन्य वाहनों को भी इलेक्ट्रिक बनाया जा सकता है यूरोपीय संघ चाहता है कि 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने की योजनाओं में सेनाओं को भी शामिल किया जाए और इसका सबसे अच्छा तरीका है युद्ध रोकना
War मैं रूस की तरफ से छेड़ी गई युद्ध को 2 साल पूरे हो गए हैं पिछले साल जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि इस युद्ध के शुरुआती 12 महीनों में ही कुल 12,00,00,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है जितना युद्ध खींचता जायेगा उतनी ही बड़ी त्रासदी बनता जाएगा आम लोगों के लिए भी और पर्यावरण के लिए भी यही नहीं इस युद्ध की वजह से मैं खतरा बढ़ा है इसके चलते यूरोप के देश अपनी सैन्य तैयारियों को और मजबूत करने में जुट गए हैंपश्चिमी सैन्य संगठन नाटो के विस्तार को भी इससे जोड़कर देखा जा सकता है और सेनाएं जितनी मजबूत होगी उतना ही ज्यादा उनका कार्बन उत्सर्जन होगा
ये दुनिया लगातार खतरनाक होती जा रही है क्योंकि इसके कई हिस्सों में युद्ध चल रहा है और कई जगहों पर युद्ध का खतरा मंडरा रहा है इसीलिए बहुत से देश अपनी सेनाओं को मजबूत करने में जुटे हैं लड़ाकू विमान टैंकहथियार और बख्तरबंद गाड़ियों पर अरबों डॉलर झोंके जा रहे हैंमैदान ए जंग में बरसने वाले गोलों के बीच इस बात पर किसी का ध्यान नहीं जाता कि युद्ध की वजह से पर्यावरण को कितना नुकसान होता हैजब पृथ्वी के बढ़ते तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात होती है तो इसमें युद्ध और सेनाओं की भूमिका पर ज्यादा बात नहीं होतीलेकिन अमेरिकी सेना अगर देश होती तो वह दुनिया के 50 सबसे बड़े में से एक होती अकेले अमेरिकी सेना का उत्सर्जन मार्क या सूजन से ज्यादा है उसने 2017 में 23.5000 किलो टन का उत्सर्जन कियाजब सेना युद्ध में जाती है तो उनका कार्बन उत्सर्जन और बढ़ जाता हैसैन्य टकराव जानमाल की भारी हानि के साथ साथ हमें जलवायु संरक्षण के लक्षणों से भटकाते हैं मिसाल के तौर पर यूक्रेन में दो शुरू होने के साथ ही यूरोप में ऊर्जा का संकट पैदा हो गया रूसी तेल और गैस की आपूर्ति को बंद कर दिया गया ऐसे में जो देशअक्षय ऊर्जा की तरफ जा रहे थे उनके सामने संकट खड़ा हो गया और उन्हें तुरंत तुरंत ऊर्जा के स्रोतों की तरफ जाना पड़ा जो बहुत ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करते हैं जैसे कि जर्मनी जो अपनी तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए फिर कोयले की तरफ देखने कोमजबूर हैं युद्ध में तबाह होने वाले शहरों को फिर से बसाया जाता है इसके लिए बड़े पैमाने पर निर्माण होता है उससे होने वाले कार्बन उत्सर्जन को भी वजह से जलवायु को होने वाले नुकसान में गिना जाएगाबेशक युद्ध छेड़ने वालों के पास उसके समर्थन में तर्क रहेंगे लेकिन युद्ध कभी समाधान नहीं होता युद्ध सिर्फ एक त्रासदी होता है इंसानों के लिए भी और पर्यावरण के लिए
इस तरफ दुनिया बढ़ रही है उसे देखते हुए वो दिन दूर नहीं जब जलवायु संकट की वजह से युद्ध छिड़ सकता है खासकर पानी को लेकर इसकी किल्लत दुनिया की 40 फीसदी आबादी झेल रही है जमीन बंजर हो रही है जिसके चलते खाने का संकट पैदा हो सकता है हमारे आसपास की हवादूषित होती जा रही है प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है ये सोचे बिना कि जब वो खत्म हो जाएंगे तो फिर हम क्या करेंगे अगर आज हमें किसी चीज़ से वाकई लड़ना है तो वो है जलवायु संकट की उसे कैसे रोका जाए